Geeta ji ke suprasiddh shlok jarur padhe!

Geeta-ji-ke-suprasiddh-shlok

Geeta ji ke suprasiddh shlok

(1)
कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन ।
मां कर्मफलहेतुर्भू: मांते संङगोस्त्वकर्मणि।।
(अध्याय 2 श्लोक 47)
              - श्री मद् भागवत गीता-हिंदी


 अर्थ: आपको सिर्फ कर्म करने का अधिकार है, लेकिन कर्म का फल देने का अधिकार भगवान् का है, कर्म फल की इच्छा से कभी काम मत करो|और न ही आपकी कर्म न करने की प्रवर्ती होनी चाहिए|.                            - In Hindi

सरल भाषा में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, सिर्फ तू कर्म कर, कर्म के फल की इच्छा मत रख, कर्म फल को देने का अधिकार सिर्फ ईश्वर का है, और न ही खली बेठ अर्थार्थ मनुष्य की गति हमेशा ही कर्म में रहनी चाहिए, कर्म फल को ईश्वर पर छोड दे|

Meaning: You only have the right to do karma, but God has the right to give the fruits of karma, never work with the desire of karma. Nor should you be proactive for not doing karma.

In simple language, Lord Shri Krishna says to Arjuna, only you do the work, do not desire the fruit of karma, only God has the right to give the fruit of the karma, and neither can the speed of a man be always in action. , Leave the fruit of karma to God.



(2)
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥
(अध्याय 2 श्लोक 23)
              - श्री मद् भागवत गीता-हिंदी

अर्थ:- अर्थार्थ आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।
                                        - In Hindi

भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, डर मत, अपना कर्म कर आत्मा शरीर एक माध्यम है आत्मा अज़र अमर है इसे कोई नहीं मार सकता अपना कर्म कर, और मरने मारने का डर छोड़.

Meaning: - Meaning, neither the soul can cut off its arms, nor the fire can burn it. Neither water can soak it, nor air can dry it.

Lord Shri Krishna says to Arjuna, Do not fear, the soul body is a medium by doing its deeds, the soul is immortal, no one can kill it, do their own deeds, and leave the fear of dying.

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