(1)
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)
                      -श्री मद् भागवत गीता-हिंदी

अर्थ: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं... इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो। कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो।
Meaning: You have authority over karma, never in the fruits of karma ... Therefore do not do karma for the fruits. Your right to do duty and work is never in fruits. Therefore, do not become a part of your results and do not have attachment to your stagnation.                                        - In English

(2)
हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो...
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 37).                 
                   -श्री मद् भागवत गीता-हिंदी

अर्थ: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख पा जाओगे... इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो। - हिन्दी
Meaning: If you (Arjuna) achieve Viragati in battle, then you will get heaven and if you are victorious you will get the happiness of the earth ... So get up, O Kaunteya (Arjuna), and fight with determination.     -In English